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Medium : Hindi
Session : July 2024 - January 2025
Price: IGNOU Solved Assignment for BHIC 102 can be accessed for free below
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IGNOU Solved Assignment BHIC 102 Question paper
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Section 1
प्रश्न 1: मानव के कृषि की ओर संक्रमण की प्रक्रिया संबंधी विभिन्न दृष्टिकोणों का परीक्षण। (500 शब्द)
उत्तर:
मानव सभ्यता के विकास में कृषि की ओर संक्रमण एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जिसे 'कृषि क्रांति' के रूप में भी जाना जाता है। यह प्रक्रिया मानव के शिकारी-संग्राहक जीवन शैली से एक व्यवस्थित कृषि-आधारित समाज में परिवर्तन का प्रतीक है। विभिन्न दृष्टिकोणों से इस संक्रमण की प्रक्रिया को समझा जा सकता है।
1. भौगोलिक दृष्टिकोण
भौगोलिक दृष्टिकोण के अनुसार, कृषि का उद्भव पृथ्वी के विशिष्ट क्षेत्रों में हुआ, जिन्हें 'उर्वर अर्धचंद्र' (Fertile Crescent) के रूप में जाना जाता है। यह क्षेत्र आज के पश्चिमी एशिया, उत्तरी अफ्रीका और दक्षिणी यूरोप तक फैला हुआ है। अनुकूल जलवायु, उपजाऊ मिट्टी, और जल संसाधनों की उपलब्धता ने कृषि की शुरुआत में सहायता की। यह दृष्टिकोण यह भी बताता है कि कैसे भौगोलिक स्थितियों ने विभिन्न सभ्यताओं के विकास को प्रभावित किया।
2. आर्थिक दृष्टिकोण
आर्थिक दृष्टिकोण के अनुसार, कृषि की ओर संक्रमण का मुख्य कारण खाद्य उत्पादन की आवश्यकता थी। जनसंख्या वृद्धि के कारण शिकारी-संग्राहक प्रणाली अस्थिर हो गई। कृषि ने अधिक मात्रा में खाद्य उत्पादन और भंडारण की अनुमति दी, जिससे समाज में स्थायित्व आया। साथ ही, अधिशेष उत्पादन ने व्यापार और विनिमय की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया।
3. सांस्कृतिक दृष्टिकोण
सांस्कृतिक दृष्टिकोण मानव समाज की बदलती मानसिकता और मान्यताओं पर जोर देता है। इसमें यह कहा गया है कि कृषि की ओर संक्रमण केवल एक आर्थिक या भौगोलिक आवश्यकता नहीं थी, बल्कि मानव की सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना में बदलाव का परिणाम था। यह दृष्टिकोण मानव द्वारा वन्य पौधों और जानवरों को घरेलू बनाने की प्रक्रिया पर भी जोर देता है, जिससे कृषि प्रणाली की शुरुआत हुई।
4. पारिस्थितिक दृष्टिकोण
पारिस्थितिक दृष्टिकोण के अनुसार, कृषि की ओर संक्रमण मानव और प्रकृति के बीच जटिल संबंधों का परिणाम है। जलवायु परिवर्तन, जैसे हिम युग का अंत और गर्म जलवायु की शुरुआत, ने पौधों और जानवरों की विविधता को प्रभावित किया। इसके कारण मानव ने वनस्पतियों और जीवों को अपने नियंत्रण में लेना शुरू किया और कृषि आधारित समाज की नींव रखी।
5. प्रौद्योगिकीय दृष्टिकोण
प्रौद्योगिकीय दृष्टिकोण यह बताता है कि कृषि का विकास मानव की तकनीकी प्रगति का परिणाम था। औजारों और तकनीकों के विकास, जैसे लकड़ी के हल और सिंचाई प्रणाली, ने कृषि को प्रभावी और व्यावहारिक बनाया। इसके अलावा, भंडारण तकनीकों ने खाद्य सामग्री को लंबे समय तक सुरक्षित रखने की सुविधा प्रदान की।
6. समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण
समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण कृषि को मानव समाज की संरचना और संगठन में बदलाव के रूप में देखता है। कृषि के कारण समाज में वर्ग विभाजन, संपत्ति का सृजन, और एक केंद्रीकृत शासन प्रणाली का उदय हुआ। इस दृष्टिकोण के अनुसार, कृषि ने मानव को स्थायी बस्तियां बनाने और सामूहिक जीवन जीने के लिए प्रेरित किया।
निष्कर्ष
मानव के कृषि की ओर संक्रमण की प्रक्रिया विभिन्न कारकों और दृष्टिकोणों का परिणाम है। यह प्रक्रिया केवल एक आर्थिक या प्रौद्योगिकीय परिवर्तन नहीं थी, बल्कि मानव सभ्यता के विकास का एक महत्वपूर्ण चरण थी। कृषि ने मानव जीवन को स्थायित्व, सुरक्षा, और सामाजिक संगठन प्रदान किया, जिससे आधुनिक सभ्यता की नींव पड़ी।
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प्रश्न 2: यूनानी इतिहास और इतिहास लेखन की परंपरा में थ्यूसीडाइड्स का योगदान। (500 शब्द)
उत्तर:
यूनानी इतिहास और इतिहास लेखन की परंपरा ने मानव सभ्यता के बौद्धिक और सांस्कृतिक विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस परंपरा के प्रमुख स्तंभों में से एक थ्यूसीडाइड्स (Thucydides) थे, जिन्होंने ऐतिहासिक घटनाओं का विश्लेषण और दस्तावेजीकरण करते हुए इतिहास लेखन को एक वैज्ञानिक और वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण प्रदान किया।
यूनानी इतिहास लेखन की परंपरा
यूनानी इतिहास लेखन की शुरुआत मौखिक परंपरा से हुई, जहां घटनाओं और कहानियों को काव्य और गीतों के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित किया जाता था। हेरोडोटस (Herodotus) को "इतिहास का जनक" कहा जाता है क्योंकि उन्होंने पहली बार घटनाओं को एक व्यवस्थित ढंग से लिखा। उनके लेखन में मिथकों और परंपराओं का भी समावेश था। इसके बाद थ्यूसीडाइड्स ने इतिहास लेखन को एक नई दिशा दी, जो अधिक तर्कसंगत और विश्लेषणात्मक थी।
थ्यूसीडाइड्स का योगदान
थ्यूसीडाइड्स ने पेलोपोनेसियन युद्ध (Peloponnesian War) पर आधारित एक विस्तृत ऐतिहासिक रचना की, जो एथेंस और स्पार्टा के बीच लड़ी गई थी। उनका योगदान मुख्यतः निम्नलिखित पहलुओं में देखा जा सकता है:
वस्तुनिष्ठता और तटस्थताथ्यूसीडाइड्स ने इतिहास लेखन में मिथकों, धार्मिक व्याख्याओं और काल्पनिक घटनाओं को हटा दिया। उन्होंने तथ्यों और प्रत्यक्ष प्रमाणों पर आधारित लेखन को प्राथमिकता दी। उनका मानना था कि इतिहास का उद्देश्य सच्चाई की खोज करना और भविष्य के लिए सीख प्रदान करना है।
कारण और प्रभाव का विश्लेषणथ्यूसीडाइड्स ने ऐतिहासिक घटनाओं के पीछे छिपे कारणों और उनके प्रभावों का गहन विश्लेषण किया। उन्होंने इस पर जोर दिया कि मानव प्रकृति, राजनीतिक महत्वाकांक्षा, और आर्थिक कारक इतिहास की दिशा को प्रभावित करते हैं।
राजनीतिक और सैन्य इतिहास पर जोरउनकी रचनाओं में पेलोपोनेसियन युद्ध के सैन्य अभियानों और राजनीतिक रणनीतियों का विस्तृत वर्णन है। यह दृष्टिकोण उस समय की राजनीतिक और सैन्य व्यवस्था को समझने में सहायक है।
मानवीय प्रकृति का विश्लेषणथ्यूसीडाइड्स ने अपने लेखन में मानवीय स्वभाव और व्यवहार को समझने का प्रयास किया। उन्होंने तर्क दिया कि सत्ता, भय, और स्वार्थ मानव समाज के विकास और संघर्ष के प्रमुख तत्व हैं।
यथार्थवादी दृष्टिकोणथ्यूसीडाइड्स ने ऐतिहासिक घटनाओं को यथासंभव वास्तविक रूप में प्रस्तुत किया। उनका लेखन भावनात्मक नहीं, बल्कि तर्कपूर्ण और सटीक था।
थ्यूसीडाइड्स की विरासत
थ्यूसीडाइड्स का लेखन आधुनिक इतिहासकारों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बना। उनका विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण और वस्तुनिष्ठता इतिहास लेखन में एक आदर्श मानक स्थापित करता है। उनका योगदान केवल इतिहास के लिए ही नहीं, बल्कि राजनीति, समाजशास्त्र, और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन में भी महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
थ्यूसीडाइड्स ने यूनानी इतिहास लेखन की परंपरा को एक वैज्ञानिक और यथार्थवादी दृष्टिकोण प्रदान किया। उनकी रचनाएं न केवल प्राचीन इतिहास की घटनाओं को समझने में सहायक हैं, बल्कि आधुनिक युग में भी एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक बनी हुई हैं। उनका योगदान इस बात का प्रमाण है कि इतिहास केवल अतीत की घटनाओं का वर्णन नहीं है, बल्कि मानव समाज को समझने और भविष्य को दिशा देने का एक सशक्त साधन है।
Section 2
प्रश्न 3: विश्व में मध्यपाषाण संस्कृति के प्रमुख स्थल और नातुफ़ियन संस्कृति का महत्व। (250 शब्द)
उत्तर:
मध्यपाषाण संस्कृति, जिसे मेसोलिथिक काल भी कहा जाता है, मानव सभ्यता के विकास का एक महत्वपूर्ण चरण है। इस काल में मानव ने पत्थर के औजारों का अधिक उन्नत उपयोग किया और कृषि की ओर संक्रमण की शुरुआत की।
प्रमुख स्थल
मध्यपाषाण काल के प्रमुख स्थलों में यूरोप, एशिया और अफ्रीका के विभिन्न भाग शामिल हैं। इनमें से कुछ स्थल निम्नलिखित हैं:
यूरोप: ब्रिटेन के "स्टार कैर" और डेनमार्क के "मैजेरमोसे" स्थल।
दक्षिण एशिया: भारत में मध्यप्रदेश के भीमबेटका गुफाएं।
पश्चिम एशिया: इराक और सीरिया के क्षेत्र।
अफ्रीका: उत्तरी अफ्रीका के "कप्सियन संस्कृति" स्थल।
नातुफ़ियन संस्कृति का महत्व
दक्षिण-पश्चिम एशिया में नातुफ़ियन संस्कृति (Natufian Culture) का महत्वपूर्ण योगदान रहा। यह संस्कृति लगभग 12,500-9,500 ईसा पूर्व की है और इसे कृषि क्रांति का आरंभिक चरण माना जाता है।
कृषि का विकास: नातुफ़ियन लोग पहली बार जौ और गेहूं जैसे अनाज उगाने लगे। यह मानव के शिकारी-संग्राहक जीवन से स्थायी कृषि जीवन की ओर एक बड़ा कदम था।
बस्तियों का निर्माण: नातुफ़ियन समाज ने पहली बार स्थायी बस्तियों का निर्माण किया, जो सभ्यता के विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
सामाजिक संगठन: नातुफ़ियन संस्कृति ने समाज में वर्ग और श्रेणी की संरचना की शुरुआत की।
निष्कर्ष
मध्यपाषाण संस्कृति ने मानव इतिहास को नई दिशा दी। नातुफ़ियन संस्कृति ने कृषि और स्थायी बस्तियों की नींव रखकर मानव सभ्यता को स्थायित्व प्रदान किया।
प्रश्न 4: असीरियन साम्राज्य के क्षेत्र विस्तार और उसके पतन के कारण। (250 शब्द)
उत्तर:
असीरियन साम्राज्य, प्राचीन मेसोपोटामिया का एक शक्तिशाली साम्राज्य, अपने सैन्य कौशल, प्रशासनिक व्यवस्था और सांस्कृतिक योगदान के लिए प्रसिद्ध था। यह साम्राज्य लगभग 900 ईसा पूर्व से 612 ईसा पूर्व के बीच अपने चरम पर था।
क्षेत्र विस्तार
सैन्य कुशलता: असीरियन साम्राज्य ने उन्नत सैन्य तकनीकों, जैसे घेराबंदी तकनीकों और लौह हथियारों का उपयोग कर अपनी सीमाओं का विस्तार किया।
प्रशासनिक संरचना: इस साम्राज्य में एक केंद्रीकृत प्रशासन था, जो कर संग्रह और स्थानीय प्रशासन को प्रभावी ढंग से संचालित करता था।
विजय अभियान: असीरियन शासकों, विशेष रूप से अशुरनासिरपाल II और तिगलथ-पिलेसर III ने पश्चिम एशिया, मिस्र, और भूमध्य सागर के क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की।
आर्थिक विकास: साम्राज्य की समृद्धि का आधार व्यापार और कृषि उत्पादन था, जिसने साम्राज्य को समृद्ध और शक्तिशाली बनाया।
पतन के कारण
अत्यधिक विस्तार: साम्राज्य का अत्यधिक विस्तार उसके प्रशासन और सैन्य संसाधनों को कमजोर कर गया।
आंतरिक विद्रोह: विभिन्न प्रांतों में असंतोष और विद्रोह ने साम्राज्य की स्थिरता को बाधित किया।
विदेशी आक्रमण: बेबीलोन और मीड्स के गठबंधन ने निनेवे पर आक्रमण कर 612 ईसा पूर्व में साम्राज्य को समाप्त कर दिया।
आर्थिक समस्याएं: युद्ध और कराधान ने आर्थिक संकट को बढ़ाया।
निष्कर्ष
असीरियन साम्राज्य अपने समय का एक महान साम्राज्य था, लेकिन अत्यधिक विस्तार, आंतरिक अस्थिरता और बाहरी आक्रमणों के कारण इसका पतन हुआ। यह साम्राज्य इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज है।
प्रश्न 5: लोहे के आविर्भाव और प्रसार तथा प्रभाव। (250 शब्द)
उत्तर:
लोहे का आविर्भाव और प्रसार
लोहे का आविर्भाव लगभग 1500 ईसा पूर्व के आसपास हुआ। यह युग 'आयरन एज' (लौह युग) के नाम से जाना जाता है। लोहे के पहले उपयोग के प्रमाण अनातोलिया (आज का तुर्की), मेसोपोटामिया, और भारत के कुछ हिस्सों में मिलते हैं।
लोहे का प्रसार मुख्यतः मध्य एशिया, दक्षिण एशिया और यूरोप में हुआ। भारत में यह लगभग 1200-1000 ईसा पूर्व के बीच व्यापक रूप से उपयोग में आया। इसके प्रसार का मुख्य कारण इसकी उपलब्धता और कार्यशीलता थी। लोहे की खदानों की खोज और खनन तकनीकों के विकास ने इसके उपयोग को बढ़ावा दिया। लोहे के औजार और हथियार बनाने की क्षमता ने इसे एक क्रांतिकारी धातु बना दिया।
लोहे का प्रभाव
कृषि में सुधार: लोहे के औजारों जैसे हल, कुदाल और फावड़े ने कृषि में क्रांति ला दी। इससे उपज बढ़ी और समाज में स्थायित्व आया।
सैन्य शक्ति: लोहे के हथियारों ने सेनाओं को अधिक शक्तिशाली बनाया। इससे बड़े साम्राज्यों के निर्माण में सहायता मिली।
आर्थिक विकास: लोहे के व्यापार ने आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया। इससे समाज में एक नई आर्थिक संरचना का विकास हुआ।
सामाजिक बदलाव: लोहे के प्रसार ने समाज में श्रम विभाजन और विशेषीकरण को बढ़ावा दिया। इससे समाज अधिक संगठित हुआ।
निष्कर्ष
लोहे का आविर्भाव और प्रसार मानव इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इसने न केवल तकनीकी और आर्थिक विकास में योगदान दिया, बल्कि समाज के स्वरूप को भी परिवर्तित किया।
Section 3
प्रश्न 6: पुरातत्व में काल निर्धारण। (100 शब्द)
उत्तर:
पुरातत्व में काल निर्धारण (Dating) अतीत के अवशेषों और घटनाओं की सही समयावधि निर्धारित करने की प्रक्रिया है। यह दो विधियों पर आधारित है: सापेक्ष काल निर्धारण (Relative Dating) और सटीक काल निर्धारण (Absolute Dating)। सापेक्ष काल निर्धारण में क्रमवार अध्ययन किया जाता है, जैसे मिट्टी की परतें (स्ट्रेटिग्राफी)। सटीक काल निर्धारण में रेडियोकार्बन डेटिंग, थर्मोल्यूमिनेसेंस और पोटेशियम-आर्गन जैसी वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग किया जाता है। ये विधियां ऐतिहासिक घटनाओं और मानव विकास को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। काल निर्धारण पुरातत्व अध्ययन को विश्वसनीय और सटीक बनाता है।
प्रश्न 7: चीन में कांस्ययुगीन सभ्यता। (100 शब्द)
उत्तर:
चीन में कांस्ययुगीन सभ्यता (Bronze Age Civilization) का विकास लगभग 2000 ईसा पूर्व हुआ और यह शांग राजवंश (1600-1046 ईसा पूर्व) के दौरान अपने चरम पर पहुंची। इस काल में कांस्य धातु का उपयोग औजार, हथियार और धार्मिक अनुष्ठानों में किया गया। शांग काल में उन्नत शहरीकरण, लेखन प्रणाली और संगठित शासन प्रणाली विकसित हुई। पुरातात्त्विक स्थलों जैसे अanyang में कांस्य कला के उत्कृष्ट नमूने और किलेबंदी के अवशेष मिले हैं। यह सभ्यता कृषि, व्यापार और धार्मिक अनुष्ठानों पर आधारित थी, जिसने चीन की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक नींव को मजबूती प्रदान की।
प्रश्न 8: सासानिद अर्थव्यवस्था। (100 शब्द)
उत्तर:
सासानिद साम्राज्य (224-651 ईस्वी) की अर्थव्यवस्था कृषि, व्यापार और शिल्पकारी पर आधारित थी। साम्राज्य में भूमि का प्रमुख हिस्सा शाही परिवार, धर्मस्थलों और कुलीन वर्ग के नियंत्रण में था। कृषि से राजस्व प्राप्ति के लिए कर प्रणाली विकसित की गई थी। सिल्क रूट के माध्यम से व्यापार सासानिद अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा था, जिससे चीन, भारत, और रोमन साम्राज्य के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित हुए। इस साम्राज्य में शिल्पकला और मुद्राओं का प्रचलन भी उन्नत था। सासानिद अर्थव्यवस्था ने साम्राज्य को आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से सशक्त बनाया।
प्रश्न 9: खानाबदोश कला। (100 शब्द)
उत्तर:
खानाबदोश कला उन घुमंतू समुदायों की सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है, जो एक स्थान पर स्थायी रूप से नहीं बसते। यह कला मुख्यतः पशुपालन, शिकार, और दैनिक जीवन से प्रेरित होती है। खानाबदोश कला में ज्यामितीय डिज़ाइन, जानवरों के रूपांकनों, और व्यावहारिक उपयोग की वस्तुओं का निर्माण शामिल है। गहने, हथियार, और तंबू सजावट इसके प्रमुख उदाहरण हैं। इनकी कला में सादगी और प्राकृतिक सामग्रियों का उपयोग दिखाई देता है। खानाबदोश कला न केवल उनकी जीवनशैली को दर्शाती है, बल्कि उनके पर्यावरण और सांस्कृतिक प्रभावों का भी प्रतिबिंब है। यह कला उनकी पहचान और परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
प्रश्न 10: मिस्र सभ्यता के पतन के कारण। (100 शब्द)
उत्तर:
मिस्र सभ्यता का पतन लगभग 1000 ईसा पूर्व के बाद शुरू हुआ। इसके प्रमुख कारणों में आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता, राजवंशीय संघर्ष, और कमजोर शासन प्रणाली थे। बाहरी आक्रमण, जैसे कि हाइक्सोस, हित्ती, और फारसियों के हमले, सभ्यता की स्थिरता को कमजोर कर गए। प्राकृतिक आपदाओं, जैसे नील नदी की बाढ़ और कृषि संकट, ने आर्थिक संरचना को प्रभावित किया। व्यापार में गिरावट और सांस्कृतिक विभाजन ने भी पतन को तेज किया। इन सभी कारणों ने मिस्र की एक महान सभ्यता को धीरे-धीरे पतन की ओर धकेल दिया।
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