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BANS 183: पर्यटन मानविज्ञान, Tourism Anthropology | IGNOU Solved Assignment 2024-25 (Free)

Standard information
  1. Medium : Hindi

  2. Session : July 2024 - January 2025

  3. Price: IGNOU Solved Assignment for BANS 183 can be accessed for free below


Disclaimer

This is a reference material. Students are expected to verify the veracity of the content and expected to form their own responses to the answers.


 


Section 1


प्रश्न 1: मानवविज्ञान में पर्यटन के अध्ययन के इतिहास पर चर्चा करें। (500 शब्द)

उत्तर:

पर्यटन का अध्ययन मानवविज्ञान में एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है जो समाजों, संस्कृतियों और उनके आर्थिक-सामाजिक प्रभावों का विश्लेषण करता है। यह अध्ययन उन्नीसवीं सदी के अंत और बीसवीं सदी के प्रारंभ में शुरू हुआ, जब यात्राओं और विदेश भ्रमणों का चलन बढ़ा। धीरे-धीरे, मानवविज्ञानियों ने पर्यटन को एक गंभीर अकादमिक अध्ययन का विषय माना, जिससे सामाजिक और सांस्कृतिक प्रक्रियाओं पर इसके प्रभाव को समझा जा सके।


प्रारंभिक चरण:मानवविज्ञान में पर्यटन अध्ययन का प्रारंभिक उद्देश्य समाजों की संरचना और सांस्कृतिक विनिमय का विश्लेषण करना था। मानवविज्ञानी स्थानीय समुदायों में विदेशियों के आगमन के प्रभावों का अध्ययन करते थे और इस पर शोध करते थे कि कैसे इन संपर्कों से समाज के आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक पहलुओं में बदलाव आते हैं। इस संदर्भ में, पर्यटन को एक आर्थिक क्रिया और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का साधन माना गया।


उन्नति का दौर:बीसवीं सदी के मध्य में, मानवविज्ञान में पर्यटन अध्ययन ने एक संगठित रूप लिया। इस दौरान, मानवविज्ञानी यह अध्ययन करने लगे कि कैसे स्थानीय समाजों में बाहरी पर्यटकों की उपस्थिति से स्थानीय संस्कृति और जीवनशैली प्रभावित होती है। उदाहरण के लिए, ग्रामीण क्षेत्रों में पारंपरिक जीवनशैली के प्रति पर्यटकों की रुचि ने स्थानीय परंपराओं के संरक्षण और सांस्कृतिक प्रदर्शन को प्रोत्साहित किया।


वर्तमान समय:आधुनिक समय में, पर्यटन अध्ययन के दायरे में वैश्वीकरण, सांस्कृतिक संरक्षण, और सामाजिक पहचान जैसे मुद्दे शामिल हो गए हैं। पर्यटन से स्थानीय लोगों की आजीविका पर असर पड़ता है और इसके माध्यम से स्थानीय संस्कृति का प्रसार भी होता है। इसके अलावा, मानवविज्ञानी यह भी विश्लेषण करते हैं कि कैसे पर्यटन के कारण पर्यावरणीय और सांस्कृतिक संसाधनों पर दबाव पड़ता है और यह समाज में असमानता को बढ़ावा दे सकता है।


निष्कर्ष:मानवविज्ञान में पर्यटन का अध्ययन एक विस्तृत और महत्वपूर्ण क्षेत्र है जो समाजों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान, सामाजिक संरचना में बदलाव, और आर्थिक विकास जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालता है। आज, मानवविज्ञानी पर्यटन को केवल एक यात्रा या मनोरंजन के रूप में नहीं देखते, बल्कि इसे समाज के संरचनात्मक और सांस्कृतिक परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण घटक मानते हैं।


 

प्रश्न 2: उपयुक्त उद्धरणों के साथ मूर्त और अमूर्त विरासत को परिभाषित कीजिए। (500 शब्द)

उत्तर:

विरासत का अर्थ उन सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों से है जो किसी समाज, समुदाय, या राष्ट्र की पहचान को दर्शाती हैं और अगली पीढ़ियों को सौंपी जाती हैं। विरासत मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है - मूर्त विरासत और अमूर्त विरासत


मूर्त विरासत (Tangible Heritage)

मूर्त विरासत उन भौतिक वस्तुओं और स्थानों को कहते हैं जिन्हें छुआ और देखा जा सकता है। ये ऐसे संरचनात्मक और भौतिक धरोहर हैं, जिनमें ऐतिहासिक इमारतें, स्मारक, वास्तुकला, और पुरातात्विक स्थल शामिल होते हैं। मूर्त विरासत किसी समुदाय या राष्ट्र के इतिहास, संस्कृति, और स्थापत्य कौशल का प्रतीक होती है।


उदाहरण:ताजमहल, लाल किला, खजुराहो के मंदिर, और भारत के विभिन्न किले मूर्त विरासत के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। ये स्थान न केवल ऐतिहासिक महत्व रखते हैं, बल्कि सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक भी हैं। जैसा कि यूनेस्को के अनुसार, “वह स्थल जो ऐतिहासिक, सांस्कृतिक या वैज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण हो, उसे विश्व धरोहर माना जाता है।”

मूर्त विरासत का संरक्षण महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमारे अतीत का भौतिक प्रमाण है। यह वास्तुकला और कला के माध्यम से हमारे पुरखों की कुशलताओं और उनकी जीवनशैली की झलक प्रस्तुत करती है। इसके अलावा, मूर्त धरोहरें पर्यटन का एक प्रमुख स्रोत भी होती हैं और आर्थिक विकास में योगदान करती हैं।


अमूर्त विरासत (Intangible Heritage)

अमूर्त विरासत उन परंपराओं, मान्यताओं, भाषाओं, और सामाजिक प्रथाओं को कहते हैं जिन्हें देखा या छुआ नहीं जा सकता, लेकिन वे सांस्कृतिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं। इसमें पारंपरिक नृत्य, संगीत, लोककथाएँ, धार्मिक अनुष्ठान, त्योहार, भाषा और ज्ञान शामिल होते हैं। अमूर्त विरासत लोगों के दैनिक जीवन और सामाजिक ताने-बाने में गहराई से जुड़ी होती है।


उदाहरण:भारतीय शास्त्रीय संगीत, योग, कुंभ मेला, और छठ पूजा अमूर्त विरासत के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। ये प्रथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही हैं और समाज में विशेष महत्व रखती हैं। जैसा कि यूनेस्को ने कहा है, “अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर वह होती है जो समुदायों और समूहों द्वारा उनके इतिहास, परंपरा, और पहचान को बनाए रखने के लिए संजोई जाती है।”

अमूर्त विरासत का संरक्षण भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना मूर्त विरासत का, क्योंकि यह हमारी सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक एकता को बनाए रखने में सहायक होती है। अमूर्त विरासत के संरक्षण के लिए हमें इन परंपराओं का पालन करना चाहिए और नई पीढ़ियों को इनके महत्व से अवगत कराना चाहिए।


निष्कर्ष

मूर्त और अमूर्त दोनों प्रकार की विरासतें समाज की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। मूर्त विरासत हमारे अतीत का भौतिक रूप में प्रमाण है, जबकि अमूर्त विरासत हमारी सांस्कृतिक परंपराओं और सामाजिक मान्यताओं का प्रतीक है। यूनेस्को के अनुसार, “सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण केवल भौतिक वस्तुओं तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि अमूर्त सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों को भी संजोए रखने की आवश्यकता है।”

इन दोनों प्रकार की विरासतों का संरक्षण आवश्यक है ताकि हमारे आने वाले पीढ़ियाँ भी अपनी जड़ों और परंपराओं से जुड़ी रह सकें और अपनी सांस्कृतिक पहचान पर गर्व महसूस कर सकें।


 

Section 2


प्रश्न 1: उपयुक्त उद्धरणों के साथ सांस्कृतिक विरासत के रूप में संग्रहालयों पर एक नोट लिखें। (250 शब्द)

उत्तर:

संग्रहालय किसी भी समाज की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को संजोने का एक महत्वपूर्ण माध्यम होते हैं। ये स्थान ऐतिहासिक वस्त्रों, शिलालेखों, कलाकृतियों, और प्राचीन वस्तुओं को संरक्षित करते हैं, जो अतीत की अनमोल धरोहरें हैं। यूनेस्को के अनुसार, “संग्रहालय केवल धरोहर के संरक्षण के स्थान नहीं हैं, बल्कि वे सांस्कृतिक जागरूकता बढ़ाने और शैक्षिक संसाधन के रूप में भी काम करते हैं।”

संग्रहालय का महत्वसंग्रहालयों का महत्व इसलिए भी है कि वे जनता को अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ते हैं। संग्रहालय न केवल कलात्मकता को संजोते हैं बल्कि ऐतिहासिक घटनाओं और सांस्कृतिक परंपराओं की जानकारी भी देते हैं।

उदाहरण:दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का प्रमुख केंद्र है। यह प्राचीन काल से आधुनिक काल तक की सांस्कृतिक धरोहरों को सुरक्षित रखता है और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

शैक्षिक एवं सामाजिक प्रभाव:संग्रहालय शोध और शिक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। छात्रों, इतिहासकारों, और शोधकर्ताओं को अपने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक ज्ञान को विस्तृत करने का अवसर प्रदान करते हैं।

इस प्रकार, संग्रहालय सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने और लोगों को अपनी संस्कृति से जोड़ने में एक अनिवार्य भूमिका निभाते हैं।

 

प्रश्न 2: ताजमहल और भीमबेटका की गुफाओं के संरक्षण के लिए उठाए गए कदमों पर चर्चा कीजिए। (250 words)

उत्तर:

ताजमहल और भीमबेटका की गुफाएँ दोनों भारत की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहरें हैं। दोनों को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। इनका संरक्षण अत्यधिक महत्वपूर्ण है ताकि ये ऐतिहासिक धरोहरें आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित रह सकें।

ताजमहल का संरक्षणताजमहल का संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा किया जाता है। मुख्य कदमों में यमुना नदी की सफाई, वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए आसपास के क्षेत्र में उद्योगों पर प्रतिबंध, और संरचना की सफाई शामिल हैं। ताजमहल की संगमरमर की चमक बनाए रखने के लिए मड-पैक थेरेपी (Multani मिट्टी का लेप) का भी उपयोग किया गया है।

भीमबेटका की गुफाओं का संरक्षणभीमबेटका की गुफाओं में प्राचीन चित्र और शिलालेख हैं, जिनका संरक्षण संवेदनशीलता के साथ किया जाता है। ASI द्वारा गुफाओं की नियमित रूप से सफाई की जाती है और इन्हें पर्यावरणीय क्षति से बचाने के लिए सुरक्षा व्यवस्था लागू की गई है। साथ ही, अनाधिकृत प्रवेश को नियंत्रित करने के लिए गुफाओं के चारों ओर सुरक्षा क्षेत्र बनाए गए हैं।

इन प्रयासों से इन धरोहरों को प्राकृतिक और मानवीय क्षति से सुरक्षित रखने में सहायता मिलती है। इन कदमों के माध्यम से ताजमहल और भीमबेटका की गुफाएँ भारतीय इतिहास और संस्कृति की महत्वपूर्ण निशानियों के रूप में संरक्षित हैं।

 

प्रश्न 3: इकाई ५ में चर्चित उदाहरण के साथ पर्यटन में वस्तुकरण पर चर्चा कीजिए। (250 words)

उत्तर:

पर्यटन में वस्तुकरण (Commodification) का अर्थ है कि किसी संस्कृति, परंपरा, या स्थल को आर्थिक लाभ के लिए एक वस्तु के रूप में प्रस्तुत करना। इस प्रक्रिया में पर्यटन स्थल या सांस्कृतिक गतिविधियों को बाजार की मांग के अनुसार इस तरह से प्रस्तुत किया जाता है कि उनकी विशिष्टता और मौलिकता पर असर पड़ सकता है।

वस्तुकरण का प्रभाव:वस्तुकरण के कारण स्थानीय संस्कृति का मूल स्वरूप बदलने लगता है और इसे पर्यटकों की रुचि के अनुसार ढालने का प्रयास किया जाता है। इस प्रक्रिया में संस्कृति को उसके पारंपरिक रूप से अलग एक व्यावसायिक उत्पाद के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। उदाहरण के लिए, स्थानीय त्योहारों का व्यवसायीकरण हो जाना, जिसमें उनकी मौलिकता खोने लगती है।

इकाई ५ के उदाहरण:इकाई ५ में वर्णित उदाहरणों में से एक भारतीय ग्रामीण संस्कृति का वस्तुकरण है, जहाँ पर्यटकों को ग्रामीण जीवन का अनुभव करवाने के नाम पर कृत्रिम आयोजन किए जाते हैं। इसी प्रकार, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में स्थानीय रीति-रिवाजों और नृत्यों को व्यावसायिक स्वरूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिससे उनकी सांस्कृतिक पहचान पर असर पड़ता है।

निष्कर्ष:पर्यटन में वस्तुकरण से आर्थिक लाभ अवश्य मिलता है, लेकिन इसके कारण सांस्कृतिक अस्मिता को नुकसान पहुँच सकता है। अतः यह आवश्यक है कि वस्तुकरण का संतुलित रूप में उपयोग किया जाए ताकि स्थानीय संस्कृति और पर्यटन का विकास साथ-साथ हो सके।


 

Section 3 (Explain in 150 words)


1. पर्यटक / अतिथि

पर्यटक या अतिथि वे व्यक्ति होते हैं, जो यात्रा के उद्देश्य से किसी स्थान का भ्रमण करते हैं। भारतीय संस्कृति में अतिथि को देवता के समान माना गया है, जैसा कि "अतिथि देवो भव" में व्यक्त किया गया है। पर्यटक किसी नए स्थान पर आते हैं और स्थानीय संस्कृति, रीति-रिवाज, परंपराओं तथा प्राकृतिक सौंदर्य का अनुभव करते हैं। उनके आगमन से न केवल सांस्कृतिक आदान-प्रदान होता है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी प्रोत्साहन मिलता है।

पर्यटन से स्थानीय व्यवसायों को लाभ होता है और रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं। अतिथि स्थानीय समाज के लिए नई दृष्टि, विचार और अनुभव लेकर आते हैं। हालांकि, पर्यटकों की संख्या अधिक होने पर पर्यावरणीय समस्याएँ भी उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे प्रदूषण और संसाधनों की कमी। अतः पर्यटकों का स्वागत सत्कार के साथ-साथ सतत पर्यटन की अवधारणा को अपनाना भी आवश्यक है, जिससे पर्यावरण और संस्कृति का संरक्षण हो सके।


 

2. स्थानीय पर्यावरण बनाम पर्यटक स्थल

स्थानीय पर्यावरण और पर्यटक स्थलों के बीच एक जटिल संबंध होता है। एक ओर, पर्यटक स्थलों के विकास से स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ होता है, रोजगार के अवसर उत्पन्न होते हैं, और सांस्कृतिक पहचान को भी बढ़ावा मिलता है। दूसरी ओर, अत्यधिक पर्यटन से स्थानीय पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

अत्यधिक पर्यटक गतिविधियाँ जैसे वाहनों का प्रयोग, कचरा, और अनियंत्रित निर्माण से पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ता है। हिमालय, गोवा, और राजस्थान जैसे प्रमुख पर्यटक स्थलों पर यह प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। स्थानीय वनस्पति, जलस्रोत, और वन्यजीवन पर भी पर्यटन का दबाव पड़ता है, जिससे प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता है।

इस समस्या के समाधान हेतु सतत पर्यटन (Sustainable Tourism) को अपनाना आवश्यक है। इसके तहत पर्यटकों को जागरूक बनाना, कचरा प्रबंधन, और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी जाती है ताकि पर्यटक स्थल और स्थानीय पर्यावरण का संतुलन बना रहे।


 

3. एकोटूरिज्म

एकोटूरिज्म, जिसे पारिस्थितिकी पर्यटन भी कहा जाता है, पर्यावरण की सुरक्षा और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यात्रा करने की प्रक्रिया है। यह पर्यटन उस क्षेत्र में किया जाता है जहाँ पर्यावरणीय, सांस्कृतिक और पारिस्थितिकी से संबंधित पहलुओं का ध्यान रखा जाता है। एकोटूरिज्म का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना प्राकृतिक स्थलों का आनंद लेना और वहां के पारिस्थितिकी तंत्र को समझना है।

इस पर्यटन के द्वारा स्थानीय समुदायों को रोजगार मिलता है और उनका जीवन स्तर सुधारने में मदद मिलती है। इसके अलावा, यह वन्यजीवों और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाता है। एकोटूरिज्म प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने के साथ-साथ स्थिर और जिम्मेदार पर्यटन का आदर्श प्रस्तुत करता है। इस प्रकार, यह न केवल पर्यटकों के लिए, बल्कि पर्यावरण और समुदाय के लिए भी लाभकारी है।


 

4. सतत पर्यटन

सतत पर्यटन वह पर्यटन है जो पर्यावरण, समाज और अर्थव्यवस्था पर न्यूनतम नकारात्मक प्रभाव डालते हुए प्राकृतिक और सांस्कृतिक संसाधनों का संरक्षण करता है। इसका उद्देश्य न केवल पर्यटकों के अनुभव को सुधारना है, बल्कि स्थानीय समुदायों की भलाई और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करना है। सतत पर्यटन में ऊर्जा की बचत, पानी का संरक्षण, पुनर्चक्रण और स्थानीय उत्पादों का समर्थन शामिल होता है।

यह पर्यटन स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करता है और उनके सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करता है। साथ ही, यह पर्यटकों को अपने पर्यावरण के प्रति जागरूक करता है और जिम्मेदार यात्रा करने के लिए प्रेरित करता है। सतत पर्यटन का मुख्य उद्देश्य पर्यावरणीय स्थिरता और सामाजिक समानता को बढ़ावा देना है, जिससे भविष्य में भी पर्यटन उद्योग का विकास संभव हो सके। यह दीर्घकालिक रूप से यात्रा उद्योग के लिए लाभकारी सिद्ध होता है।


 
5. फील्ड साइट / पर्यटक स्थल

फील्ड साइट या पर्यटक स्थल वे स्थान होते हैं जो प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक धरोहर, ऐतिहासिक महत्व या अन्य आकर्षण के कारण पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। ये स्थल स्थानीय या अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों के लिए विशेष रुचि के होते हैं, जहाँ लोग विश्राम, मनोरंजन, शिक्षा, और साहसिक गतिविधियों का आनंद लेते हैं।

पर्यटक स्थलों में समुद्र तट, पहाड़, वन्यजीव अभयारण्य, ऐतिहासिक किले, मंदिर, और संग्रहालय प्रमुख रूप से शामिल होते हैं। इन स्थलों पर जाने से न केवल पर्यटकों को आनंद मिलता है, बल्कि इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी लाभ होता है। पर्यटन से रोजगार के अवसर पैदा होते हैं और स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा मिलता है।

फील्ड साइट का संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि यह प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रह सके। पर्यटकों को इन स्थलों पर जिम्मेदार और सतत यात्रा करने के लिए प्रेरित किया जाता है।


 
6. मूल निवासी / मेजबान

मूल निवासी या मेजबान वे लोग होते हैं जो किसी विशेष क्षेत्र या देश में जन्मे और पले-बढ़े होते हैं। ये व्यक्ति अपने क्षेत्र की संस्कृति, परंपराओं और रीति-रिवाजों से गहरे जुड़े होते हैं। जब पर्यटक किसी स्थान पर यात्रा करते हैं, तो मूल निवासी उन्हें स्थानीय जीवन, भोजन, भाषा और परंपराओं से परिचित कराते हैं।

मेजबान का भूमिका पर्यटन में महत्वपूर्ण होती है क्योंकि वे न केवल पर्यटकों का स्वागत करते हैं, बल्कि उनके अनुभव को भी समृद्ध बनाते हैं। वे पर्यटकों को स्थानी क गतिविधियों और स्थलों के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं और उनके साथ अपनी सांस्कृतिक धरोहर साझा करते हैं।

मूल निवासियों की मेज़बानी से पर्यटक को स्थान और उसकी संस्कृति के बारे में वास्तविक जानकारी मिलती है। इस प्रकार, मेज़बान और पर्यटक के बीच एक पारस्परिक संबंध बनता है जो पर्यटन को और भी अधिक प्रभावी और आनंदपूर्ण बनाता है।


 

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